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- २८ - उस समय थे श्रीपूज्य भीलाई, कई विरोधी वहां पै गये । सुना दिये सब हाल पूज्य को, असी दुधारा प्रश्न भये ।. जब तक मैं नहीं मिलूगेवर से, कुछ कहा नहीं जाता है । मीठा उत्तर दिया पूज्य ने, यही उनकी विद्वता है ॥ २९ ॥
कई लोगों को पड़ गई शंका, मूर्ति उपासक कई बने । गुप्त हुक्म पूज्य का पाकर, रतलाम जाना धरा मने ।। विहार करते आये सादड़ी, चंदनमल वहां था विद्वान् ।
बात करने से होगई निश्चय, यहां रहने से बढ़ेगा ज्ञान।।३०॥ क्रमशः आप रतलाम पधारे, शोभालालजी ठाणा दोय । वहां के हाल कहा गुरुवर को, संभाल करके रहना जोय ।। मूर्ति पूजा के कट्टर विरोधी, निज घर में मूर्ति रखते हैं । अनेक तीर्थों की करी यात्रा, फिर भी नाम से जरते हैं ॥ ३१ ॥
सेठजी से हुई बहस सूत्रों की, मूर्ति पूजा के थे प्रमाण । केवल आगम के ही नहीं पर, इतिहास के थे ऐ नाण ।। वहां से चलकर आये जावरे, दर्श पूज्य के पाये थे ।
उदयपुर के आ गये श्रावक, उनको भी समझाये थे ॥३२॥ मुनि शोभा से मिले नगरी में, सादड़ी जा चौमास किया । राजप्रश्नी सूत्र व्याख्यान में, फूलचन्द को बोध दिया । उसने प्रश्न भेजे पूज्य को, सेठ साहब ने उत्तर लिखे । मध्यस्थ भाव से मूर्तिपूजा, स्वीकार करना स्पष्ट लिखे ॥३॥
हुई बीमारी गुरुवर के तन, पाप कर्म का था उदय । प्रणित होगया पुण्य कर्म में, ग्रन्थ पढ़ने का मिला समय । चन्दनमल नागोरी सहायक, श्रागम पढ़ने को देते थे । जावद से फिर आये गुरुजी, लाभ व्यावञ्च का लेते थे ॥३४॥