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दो बहनों को देकर दीक्षा, पुनः नया नगर में आये थे । पूज्य हुकम ने लिखे हाथों से, उपासकसूत्र वहां पाये थे।
आनन्द और अंबड़ श्रावक के, अधिकार पाठ में पाया था । स्पष्ट अक्षर जिन प्रतिमा का, वह सबको दिखलाया था ॥ २३ ॥
पूज्य पधारे गुर्जर प्रांत में, दो वर्षों से पुनः आये थे । जिनकी आज्ञा से मोडीरामजी, आबू यात्रा कर पाये थे। क्रमशः पाली नगर पधारे, शामिल हुए साधु सेंतीस ।
कर्म कनक शोभा अरूगुरुवर,मूर्तिपूजा की थी जगीश ॥२४॥ चतुराई से चर्चा चलाई, भेद गृहस्थ नहीं पाते थे । पाठ रखे थे सूत्रों के सामने, पूज्य को यों समझाते थे। निपट लिया आपस में मामला, फिर रोयट में आये थे । मुंहपति की थी पुनः चर्चा, डोरा कहां नहीं पाये थे ॥२५॥ . जोधपुर से आये गंगापुर, गुरुवर ने चौमास किया ।
शुरू किया पढ़नाव्याकरण का, पूज्य मनाई हुक्म दिया । व्याख्यान में श्री सूत्रभगवती, पराजय पंथी को किया ।
आग्रह उदयपुर श्रीसंघ का, मेवाड़ विहार का लाभ लिया।॥२६॥ बड़े ठाठ. से व्याख्यान हमेशा, उदयपुर में होते थे । राज कर्मचारी और व्यापारी, जैन जैनेत्तर सुनते थे । जीवाभिगम विजयदेव का, अधिकार और भी चलते थे । मूर्तिपूजा था कारण मोक्ष का, सुन के कई अज्ञ जलते थे ॥२७॥
बलवंतसिंह दीवान कोठारी, नन्दलाल थे नगर सेठ । सभ्य समाज ध्यान दे सुनते, कई दुःखाने थे शिर पेठ । पन्ना सूत्र का लेकर हाथ में, 'रत्न' ने बांच सुनाया था । चिंप गये दांत जिभ तालु के, हुल्लड़ खूष मचाया था ॥२८॥