________________
२६
वहाँ से आये नगर नगीने, सतरह साधु सुहाये थे । सेठ अमरचन्द थे पीतलिया, पूज्य दर्शन को आये थे | सिद्धाचल की करते महिमा, प्रतिमा पर भाव सवाये थे । अनुमोदन फिर किया पूज्य ने, गूढ़ भेद समझाये थे ॥ १७॥ कुचेरे होकर आये जोधपुर, चौमासा खूब दीपाया था । मास खामण की करी तपस्या, व्याख्यानामृत बरसाया था। पाली होकर आये आनन्दपुर, मुनि केवल से भेट हुई।
उनके साधु को दीनी वाँचना, दिगम्बरों से विजय हुई ||१८|| तेरहपंथी को जीता बाद में, देशी का भ्रम मिटाया था । वहाँ से चल कर मिले पूज्य से, फिर ब्यावर आना सुहाया था।। स्थानायाङ्ग व्याख्यान बीच में, सुनके संघ हरवाया था । शोभालाल मुनिवर के साथे, बीकांणे जाना मन भाया था ॥ १९ ॥ भगवत्यादि सात सूत्रों की, ले वाँचना ज्ञान बढ़ाया था । सात थोकड़ा कर कण्ठस्थ, व्याख्यान रंग बरसाया था । ज्ञान दान दिया गृहस्थों को, यशः की भेरी बजाई थी ।
बजाया था ॥
वहाँ से चल कर आये ब्यावर, श्रद्धा की ज्योति जगाई थी ॥ २०॥ बिहार किया मेवाड़ मूमि में पंथी भ्रम हटाया था । देवगढ़ में शास्त्रार्थ कर, विजय डंका फौजमल को देकर दीक्षा, लाल शिष्य बनाया था । औरों को उपदेश सुना कर, दया दान चमकाया था ।। २९ ।। आकर के अजमेर नगर में, शुभ चौमासा ठाया था । व्याख्यान में श्री सूत्रभगवती, अमृत रस पिलाया था ।। सेठ चान्दमल र उमेदमल, मोखमसिंह मन भाया था । नतमस्तक समाजी हो गये, देशी से प्रेम बढ़ाया था ||२२||