SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 454
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७१ श्रावकों की साग्रह प्रार्थना लने वाला कोई नहीं है। यदि अपने भाई का काम व्यवस्थासर रखने के लिए बहुपुत्र वाला भाई अपने एक पुत्र को वहाँ भेज कर उसको अपने बराबरी का बना दे तो इसमें लाभ है या हानि ? सबने कहा कि इसमें हानि का क्या काम है इसमें तो बड़ा भारी लाभ है। मुनि०-इसी प्रकार आप समझिये कि तपागच्छ खरतरगच्छ कँवलागच्छ यह सब एक पिता के पुत्र हैं; तपा, और खरतर बहुपरिवार वाले हैं तथा कँवलों को कोई सँभालने वाला भी नहीं है । अतः गुरू महाराज ने तो मुझे आज्ञा दे दी है, पर यह बात शायद थोड़े हो भाई जानते होंगे इसलिए यदि आप मुझे आज्ञा देवें तो मैं उपकेश ( कॅवला ) गच्छ की सेवा कर सकूँ। संघ- कँवलागच्छ वाले तो इस बात को चाहते ही थे; तपागच्छ वालों का सम्बन्ध हमेशा से कँवलागच्छ के साथ रहता ही आया है और वे यह भी समझ गये कि खरतरों में जाने की अपेक्षा कँवलागच्छ में जाना अच्छा ही है । बस, कँवला और तपागच्छ वालों ने तो इस बात को स्वीकार कर कह दिया कि बहुत खुशी की बात है कि आप कॅवलागच्छ में जन्म लेकर इस गच्छ का पुनरुद्धार करते हो अतः इसमें हमारी सम्मति है; ऐसी हालत में खरतरगच्छ वालों को भी अपनी सम्मति देनी पड़ी; किन्तु उस समय उनका मुँह ताप खा गया था कि अपनी सब आशाएँ रूप. सुंदरजी के आने के बाद मिट्टी में मिल गई; पर इसका कोई उपाय भी नहीं था। बस, फिर तो देर ही क्या थी ? बैसाख कृष्ण ११ से श्री गौड़ीजी महाराज के मंदिर में वैद्यों की ओर से अठई महोत्सव
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy