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भादर्श-ज्ञान द्वितीय खण्ड
३७२ शुरू हो गया; और बैसाख शुक्ला ३ (अक्षक्ष तृतीया ) के दिन चतुर्विध श्रीसंघ की विद्यमानता एवं सम्मति से मुनिश्री ने उपकेशगच्छ का वासक्षेप लेकर आप अब विशेष रूप से उपकेशगच्छ के कहलाने लगे। ___उसो शुभ दिन मध्यान्ह में पाठशाला के कमरे में एक सभा की गई, जब श्रीसंघ एकत्र हुआ तब मुनिश्री ने प्राचार्य रत्नप्रभसूरि का जैनसमाज तथा विशेषकर श्रोसवाल समाज पर कितना उपकार है वह खूब-विस्तार से समझाया, और अंत में अपील की कि ऐसे महान उपकारी पुरुष की स्मृति के लिए इस नगर में एक संस्था स्थापित होनी चाहिये ? श्रीमान् फूलचंदजी माबक ने इसका जोरों से समर्थन किया, अतएव उसी बैटक पर संस्था स्थापन करने का निश्चय कर लिया और आचार्य रत्नप्रभसूरिजी तथा हमारे चरित्रनायकजी एवं दोनों के नाम की स्मृति चिरकाल स्थायी बनी रहे अतः संस्था का नाम 'श्रीरत्रप्रभाकर ज्ञान पुष्पमाला रखना निश्चय कर लिया तत्पश्चात संस्था के नियम और उद्देश्य बनाये । खास उद्देश्य तो यहो रखा गया था कि इस संस्था द्वारा छोटे छोटे ट्रैक्ट छपवा कर समाज में सद्ज्ञान का प्रचार करने का ही रक्खा था ।
इस संस्था के लिए उसी बैठक में चंदा की फेहरिस्त भी तैयार हो गई, जिसमें नपागच्छ, और कँवलागच्छ वालों ने तो बड़ी उदारता से उस फेहरिस्त में चन्दा चढ़ा दिया, किन्तु खरतरगच्छ वाले किसी एक भी सज्जन ने उस फेहरिस्त में चंदा नहीं चढ़ाया
और कहा कि हम फिर विचार कर चॅदा भर देवेंगे। लोग समझ गये कि खरतरों के हाथ में आया हुआ एक अमूल्य रत्न निकल