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________________ ३५५ मुनिश्री और मांगीलाल दिनों में समाप्त हो गई और उस की मांग बहुत ज्यादा आने लगी, इस हालत में तीवरी जैन श्वेताम्बर सभा की ओर से ७००० प्रतिएँ और छपवाई गई, और प्रतिमा छत्तीसी में दिये हुए सत्रों के नाम एवं स्थानों को साक्षात्कार करने को तथा हमारे स्थानक वासी ( ए + पी ) भाई लश्कर वाला ने जो अखबारों द्वारा व्यर्थ ही कुयुक्तियों से मूर्तिपूजा का विरोध किया था उसके समाधान रूप में 'गयवर विलास' की १००० प्रतिएं भी तीवरी जैन श्वेताम्बर सभा से मुद्रित करवाई। 'सिद्ध प्रतिमा मुक्तावलि' जो तीवरी से बम्बई कृपाचन्द्रसूरि के पास शुद्ध करवाने के लिये भेजी थीं, उसको भी वहाँ से भावनगर विद्याविजय प्रेस में छपवाने के लिये भिजवादी । ___ मुनिश्री के प्रयत्न तथा मुनीम चुन्नीलाल के सुप्रबन्ध से ओसियाँ बोर्डिंग का कार्य दिन ब दिन उन्नति के पथ पर पयाण करता हुआ आगे बढ़ रहा था अर्थात् बोर्डिंग की नींव सुदृढ़ हो गई थी। ____फाल्गुन शुक्ला ३ को ओसियाँ का मेला था, यों तो प्रति वर्ष मेले पर यात्रीगण आया ही करते हैं, किन्तु इस वर्ष मुनिश्री के विराजने से आस पास के भक्तों के अतिरिक्त गोड़वाड़ तक के लोग आये थे ! और सब लोगों की इच्छा मुनिश्री को अपने अपने नगर की ओर ले जाने की थी तथा समय पाकर सब लोगों ने विनती भी की; किन्तु फलौदी के श्रावक ही भाग्यशाली थे कि जिन्हों की विनती स्वीकार हो गई थी। ___ जो लोग दूर बैठे मुनिश्री का नाममात्र सुनते थे, लेख एवं पुस्तके पढ़त थे पर वे आज अ.पश्री के दर्शन कर एवं व्याख्यान सुनकर और
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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