________________
३५६
भादर्श ज्ञान द्वितीय खण्ड वार्तालाप करके आप स्वयं अपने को भाग्यशाली समझने लगे।
मुनिश्री के उपदेश से व्याख्यानों से, लेखों से, पुस्तकों से ओसियां तीर्थ की दुनिया में इतनी प्रसिद्धि हो गई कि कई ओसवाल कहलाते हुए एवं अपनी उत्पत्ति का खास स्थान श्रोसियाँ होने पर भी उस को नहीं जानते थे वे भी जानने लग गये कि ओसियाँ हमारी उत्पत्ति का खास स्थान है। ५३ मुनि श्री का फलौदी पधारना
फलौदी के श्रावक अच्छे बुद्धिमान एवं भक्तिवान थे, वे जानते थे कि मार्ग में जैनों के घरों का अभाव होने से साधुओं को तकलीफ पड़ती है अतः मेले पर आए हुए श्रावकों में से कितने ही वहाँ ठहर गये कि हम मुनिश्री के विहार में साथ रह कर सेवा का लाभ प्राप्त करेंगे। ____फाल्गुन शुक्ला पंचमी को मुनिश्री श्रेसियों से विहार कर बीकु कोर आये । जब यह खबर लोहावट वालों को मिली तो वहाँ से छोगमलजी, रावतमलजी, गेनमलजी मालचन्दजी कोचर, हजारी मलजी, कुनणमलजी, रेखचन्दजी,माणकलालजी पारख पृथ्वीराज जी चौपड़ा आदि सामने आये और फलौदी के श्रावक पहले से ही साथ में थे। ___ हरड़ायां से बिहार कर १२ मील लोहावट गये, वहाँ लोहावट के दोनों वास वाले श्रावक तो थे ही, किन्तु फलौदी से भी बहुत से श्रावक उसी समय रेल द्वारा आ पहुँचे । गाजे बाजे के साथ आप को अगवानी इस प्रकार हुई कि इसके पूर्व शायद ही इस प्रकार किसी की अगवानी हुई हो।