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पांच छ कल्याणक की चर्चा कल्याणक लिखा है जिसमें चार हत्थुत्तरा और अन्तिम (पांचवा) स्वाति नक्षत्र में बतलाया है। इस पर आचार्य अभयदेवसरि ने टोका करी है जिसको भी आप पढ़ लीजिए, वह टीका-- ___"वर्तमानस्य-महावीर नजिस्य भवन्तिति गाथार्थ प्रासादगाहा-आषाढशुद्धिषष्टो-आसाढ़ मास शक्ल पक्ष षष्ठी ति स्थिरकं दिनं १ एवं चैत्रमासे तथेति समुच्चये शद्धत्रयोदशमे वेति द्वियीयं २ चैवेल्यवधारणे तथा मार्ग शीर्ष कृष्णदशमीति तृतीय ३ बैशाख शुक्ल दशमीति चतुर्थ ४ च शब्द समुच्चयाथे कार्तिक कृष्णे चरमा पञ्च दशीति पञ्चमं ५ एतानि किमित्यह-गर्भादि दिनानि (१) गर्भ, (२) जन्म, ( ३ ) निष्क्रमण, ( ४ ) ज्ञान (५) निर्वाण दिवसा यथा क्रमं क्रमेणैवा।।
इस पर तुम विचार कर सकते हो कि हरिभद्रसूरि ने खास भगवान महावीर के पांच कल्याणक की पांचों तिथि अलग अलग कही हैं, और पूज्य अभयदेव सूरि ने उन पांचों तिथियों की टीका कर महावीर के पांच कल्याणक स्पष्ट बतलाये हैं, अब उत्सूत्र भाषी पांच कल्याणक मानने वाले हैं या छ कल्याणक मानने वाले ? यदि आप पांच कल्याणक मानने वाले को उत्सूत्र प्ररूपक मानते हो तो आचार्य हरिभद्रसूरि और अभयदेवसूरि मिथ्यात्वी ठहरे और छः कल्याणक मानने वाले को उत्सूत्र भाषी समझते हो तो खरतराचार्य उत्सूत्र प्ररूपक ठहरे और अभयदेव सूरि पांच कल्याणक मानने वाले होने से वे खरतर नहीं किन्तु खरतर मत .अभयदेवसूरि के बाद पैदा हुआ मानना पड़ेगा।