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आदर्श - ज्ञान द्वितीय खण्ड
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मुनि० - क्या आपने पंचासक नामक शास्त्र देखा है, जिसके मूल कर्ता हरिभद्रसूरि और टीका कर्त्ता अभयदेवसूरि हैं ? मांगो० - क्या पंचासक में हरिभद्रसूरि और अभयदेव सुरि ने भगवान् महावीर के पांच कल्याणक माने हैं ?
मुनि - हां । मांगि०
- क्या आपके पास पंचासक की प्रति है ? मुनि:-- मेरे पास तो नहीं है, किन्तु गुमानमुनिजी की पुस्तकें यहां पड़ी हैं जिसमें पंचासक की प्रति भी है।
मांगि० - लाओ, उसमें क्या लिखा है, मुझे देखना है । मुनि० - पेटी खोल पंचासक की प्रति ला कर उसका मूल पाठ और टीका निकाल कर सामने रखी कि इसको तुम पढ़ो,
वह पाठ इस प्रकार था -
तेसु दिणेसु धरणा, देविंदाइ करिति भत्तिणया । जिण जत्तादि विहाणा, कल्लाणं अपणो चेव ॥ ३ ॥ इ ते दिया पसत्था, ता सेसेहिंपि तेसु कायब्बां । जिण जत्तादि स हिरसंते, इम वद्धीमाणस्स ॥ ४ ॥
साढ़ मुद्धि बट्टी, तह चिते सुद्धि तेरसी चेव । मगसिर कह दसमी, वेसाहि सुद्ध दसमी य ।। ५ ॥ कतिय कण्हे चरिमा, गब्भाइ दिया जहक्कमं एते । हत्थुत्तर जोएणं चउरो, तह साइएण चरमो ॥ ६ ॥ हिगय तित्थविहिया, भगवंति निदसिया इमे तस्स । तित्थे सुविरा ||७|| गाथाओं में मितिवार पांच
सेसा वि एवं चित्र, निश्च नि श्राचार्य हरिभद्रसूरि के इन मूल