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कौसाना के दर्शन और बिहार देखा तो वहाँ न तो योगीराज हैं और न उनके कोई भंडोपकरण । बाहर भाकर बाजार में पूछा तो एक ने कहा कि थोड़ी देर हुई,
आर के महाराज इधर पधारे हैं । भंडारी जी ने क्रोध में आकर कहा, अरे भाग्यहोनी ! तुम्हारे फूटे हुए भाग्य में ऐसे महात्मा कहाँ लिखे हैं; मैं कितने प्रयत्न के साथ तो उनको लाया था, तथा तुम लोगों ने कुछ भी परवाह ही नहीं रखी, यह एक बड़े ही अफ सोस की बात है। ____भंडारीजो ने उनको ढूंढने के लिये कई श्रादमियों को भेजा तथा श्राप स्वयं भी पृथक् रास्ते की ओर गये किन्तु योगीराज का कुछ भी पता नहीं लगा। उसी दिन योगीराज कालु पहुँच गये जो कौसना से लगभग ४० मील की दूरी पर है । यह खबर एक ऊँटसवार से मालूम हुई थी, तथा योगीराज के लिये यह कोई आश्चर्य की बात भी नहीं है; वे योगबल द्वारा इच्छित कार्य कर सकते थे।
कालु में आप एक व्रष्णु के मन्दिर में जाकर ठहर गये और वहीं व्याख्यान दिया । जैन स्थानकवासियों ने आकर कहा कि आप जैन साधु होकर यहाँ क्यों ठहरे ? अपने स्थानक एवं मन्दिर है वहाँ पधारें । योगीराज ने कहा यह भी तो धर्म स्थान-मन्दिर ही है, यहां ठहरने में क्या नुक्सान है। ___ समीप में ही महेश्वरियों के घर थे, उनकी भक्ति भी बहुत थी, योगीराज ने गोचरी लाकर कर ली । जैन लोगों ने कुछ चर्चा की, योगीराज वहां से रवाना हो सीधे ही पुष्करनी पहुँच गये जो कि वहां से ५० मील की दूरी पर होगा । वहाँ आपको एक कालु का महेश्वरी मिला और कहा कि महाराज रात्रि में तो