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५० योगीराज के आत्मीय चमत्कार __योगिराज मुनिवर्य श्री रत्नविजयजी महाराज श्रोसियाँ से विहार कर मथाणीये होकर बैरी ग्राम पधारे, दो गत्रि वहाँ ठहरे । जब जोधपुर के भक्त लोगों को खबर मिली तो वे मोटरों, इक्कों, साईकिलों द्वारा बैरी आ पहुँचे । गुरु महाराज के दर्शन कर जोधपुर पधारने की प्रार्थना की, किन्तु आपको कोसने जाना था। वहाँ से कई भक्तगण साथ में हो गये; मंडोर, मुताजी के मन्दिर, बनाड़, बीसलपुर, बुचकला होते हुए आपने कौसने पहुँच कर वीतराग की भव्य मति के दर्शन किये; भंडारीजी की कही हुई बात सोलह आना सत्य निकली । दर्शन से चित्त बहुत प्रसन्न हुआ।
उन दिनों में भी भंडारोजी कौसना में राज की ओर से पदाधि. कारी थे। ___ योगीराज मूर्ति के दर्शन कर एक भग्न उपाश्रय में आकर ठहर गये, बाद में गोचरी के लिये पधारे लेकिन आपके पास एक पात्रा और एक तृपणी ही थी; गोचरी लेकर आये जिसको एक तरफ रख आष ध्यान में एकान्त में विराज गये । होनहार को नमस्कार है कि वहाँ एक श्वान आया और लाई हुई गोचरी वह कर गया। ____ योगीराज ने आकर देखा तो गोचरो का यह हाल हुआ, उसी समय तृपणी पात्रा लेकर वहाँ से चल धरे । बजार में आये तो श्रावकों ने पूछा कि महाराज कहाँ पधारते हो ! योगीराज हुँ ! कह कर चल धरे । श्रावक सब ढूँढ़िये थे, जान गये कि शायद थडिले भूमिका जाते होंगे। बाद में भंडारीजी आये, उपाश्रय में जाकर