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- २४ - वीर निर्वाण से वर्ष सित्तर, मरुधर यज्ञ से छाया था । उपकेशपुर था केन्द्र जिसमें, पाखण्ड खूब मचाया था । राव उत्पलदे वहाँ का राजा, उहड़ मंत्री की कीरती थी । पुर वासी थे सब मिथ्याति, बली चामुंडा लेती थी ॥५॥
रत्नप्रभसूरि मुनि पांच सौ, उपकेशपुर में आये थे । दिया जबर उपदेश सूरि ने, सबको जैन बनाये थे। महाजन संघ बनाय गुरु ने, शुद्धि का प्रचार किया ।
वीर मन्दिर को करी प्रतिष्ठा, जैन मण्ड फहराय दिया ॥६॥ उत्पलदेव की सन्तान संघ में, कर श्रेष्ठ काम वतलाते थे । जब से उनका गौत्र श्रेष्टि फिर, वैद्य मेहता पद पाये थे। मन्दिर बनाये ध्वज चढ़ाये, द्रव्य की नदियां बहाई थी । संघ पूजा और तीर्थों के संघ, समाज सेवा बजाई थी॥७॥
इस गौत्र में श्रेष्टि नवलमल, वीसलपुर के वासी थे । रूपादेवी थी उनके पत्नी, सुख के वे स्वर्ग वासी थे। स्वप्ने में गज देख माता ने, आनन्द खूब मनाया था । - विजय दशमी साल सेंतीस की, पुत्र जन्म यश गाया था ॥ ८॥ उच्छव किया संकेत स्वप्न का, 'गयवर' नाम गुणधारी थे। बाल कीड़ा अभ्यास विद्या का, विद्वान व्यापार में भारी थे। गणेशमल आदि षट् बन्धव, और कुटुम्ब भी था माहा । मगसर बद दशमी चौपन की, समारोह से किया विवाह ।। ९॥
माता-पिता स्त्री और बन्धव, सामग्री का सर्व संयोग । नव वर्षों लग सुख स्वतंत्र,साधुओं का था हरदम योग ।। दीक्षा की जब हुई भावना, कुटुम्ब आज्ञा नहीं दीनी थी । ठीक कियाअभ्यास ज्ञानाका, स्वयं दीक्षा ले लीनी थी ॥१०॥