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श्रीमद् रत्नप्रभसूरीश्वर-पादकमलेभ्यो नमः
आदर्श-ज्ञान
( कविता मय ) रचयिता-मुनिश्री गुणसुन्दरजी महाराज
जिनके उज्ज्वल शासन में हम, आत्म साधन करते हैं। उनके चरण कमल के अन्दर, शीश उठा कर धरते हैं ।। शुभ नाम आपका महावीर है, बीर मार्ग बतलाते हैं । हम भी वीर बन वीरों की, वीर गाथा गा सुनाते हैं ॥१॥ ____ गुरुदेव को नमस्कार कर, गुणिजन के गुण गाऊँगा ।
वचन रस लब्धि वर दाता, शारद मात मनाऊँगा ।। __पंच परमेष्टी इष्ट हमारा, जिनको, मन में ध्याऊँगा ।
संक्षेप में गुरु जीवन गाकर, रसना पावन बनाऊँगा ॥२॥ कौन वंश ? और कौन गौत्र के ? कब वे पदवी पाई थी ? किस नगर में वास आपका ? कैसे दीक्षा आई थी ? फिर संशोधन किया था कैसे ? कैसी सेवा बजाई थी ? टूटे फूटे दो शब्द में कह दूँ ? ऐसी दिल में आई थी ॥३॥
जो देखा था निज नज़रों से, कई प्रन्थों में पाया है। कई सुना फिर विद्वानों से, मिश्रमशाला बनाया है ।। कतारथ बनना था मुमको, औरोंका भाव बढ़ानाथा । गय नहीं पर पद्य बनाकर, कविताभाव दिखानाथा ॥४॥