________________
आदर्श-ज्ञान द्वितीय खण्ड
३१८
पड़ो, कारण कि गच्छों की समाचारियाँ तो तुमने देख ही ली हैं जिनमें कि वे लोग छोटी छोटो बातों के लिए एक दूसरे को मिथ्या वादी बतला रहे हैं । जैसे एक ओघा की गांढे देता है, दूसरा फांसी लगाता है । फिर भी गांठों वाला फांसी और फाँसी वाला गाठों वालों को मिथ्यात्वी कहता है । एक भगवान महावीर के पांच कल्याणक मानता है तो दूसरा छः मानता है, इसमें भी वे आपस में मिथ्यात्वी बतलाते हैं । एक स्त्रियों की पूजा करना शास्त्र सम्मत मानता है तो दूसरा उसका निषेध करता है। इस प्रकार सामायिक प्रतिक्रमण पौषध, चैत्यवंदन, स्थापना, मुंहपत्ती, पात्रों के रंग वगैरह धर्मक्रिया में भेद है और तुम्हारी प्रकृति मैंने देख ली है, तुम हरेक बात का खोजपूर्वक निर्णय करना चाहते हो । ढूंढ़ियों की तो छोटी सी दुकान थी वहाँ तुमने निर्णय कर लिया, किन्तु यहां यदि निर्णय करने को निकलोगे तो मिथ्यात्वी की उपाधि पाये बिना न रह सकोगे । अतः मेरा यह आग्रह नहीं है कि तुम तपागच्छ में दीक्षा लो या खरतरगच्छ में, किंतु जो कुछ करना है, वह खूब सोच समझ कर करना चाहिये ताकि फिर झगड़े में न पड़ना पड़े।" ____ मुनिश्री गुरु महाराज ! गच्छों की समाचारियां देख कर तो मेरा भी मन व्याकुल होगया है । जब कि सर्व आगम पंचाङ्गी
और पूर्वाचार्यों के ग्रंथों को मानने वालों का यह हाल है तो बिचारे टूढियों का तो कहना ही क्या ? फिर भी आश्चर्य की बात तो यह है कि खर-तरगच्छ वाले त्रियों को जिन पूजा का निषेध करते हैं और इसके मल उत्पादक जिनदत्तसूरि जैसे नामांकित आचार्य बतलाये जाते हैं । अतः ढूंढ़ियों की नीव तो उन्होंने