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आदर्श-ज्ञान द्वितीय खण्ड
२९६ दिया ( देखो गोड़वाड़ के मूर्तिपूजक और सादड़ी के लौंकों का; मत भेद नामक पुस्तक )।
इधर सादड़ी के चार अगिवान श्रावक श्रोसियाँ पहुँचे औरः वे परम पूज्य योगीराज के दर्शन कर मुनिश्री गयवरचन्दी से तीवरी जाकर मिले । वार्तालाप करने से मालूम हुआ कि साधु तो सर्व प्रकार से योग्य एवं समर्थ है । अतः उन्होंने विनय की कि यदि काम पड़ गया तो शास्त्रार्थ के लिये आपको सादड़ी एवं गोड़वाड़ में पधारना पड़ेगा। हम आपके पीछे ही झूझते हैं । मुनि श्री ने कहा "बेशक ! जिस समय आप याद करेंगे, हम आने को तैयार हैं।" श्रावकों को विश्वास हो गया, अतः वे तीर्थ यात्रा और गुरू बन्दन कर वापिस लौट गये।
फिर भी सादड़ो के स्थानकवासी शान्त न रह सके । उन्होंने कहा कि यदि सादड़ी के मूर्ति पूजकों ने हमारे साथ रोटी-बेटी का व्यवहार बन्द कर दिया है तो क्या हुआ, हम गाडेवाड़ के मूर्ति पूजकोंकी लड़कियों को लाकर मुंहपर मुंहपत्ती बंधा कर बाजार से निकालेंगे।
इस ताने को सुन कर सादड़ी के मूर्तिपूजक लोगों ने वरकाणे जाकर जाजमडालो और अखिल गोड़वाड़ को वरकाणे एकत्रित कर 'प्रतिमा नकल निरूपन' नामक पुस्तक पढ़ कर सुनाई और उनका खून गर्म होते ही लिखत कर डाला कि सादड़ी के स्थानकवासियों के साथ रोटी-बेटी व्यवहार बन्द किया जाता है। यदि सादड़ी के अतिरिक्त गोडवाड़ के स्थानकवासी सादड़ी के स्थानकवासियों के साथ बेटी,व्यवहार करेंगे तो उनको भो सादड़ी के स्थानकवासियों के सदृश समझा जावेगा । यह सुनकर सादड़ी के अलावा गोडवाड़