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________________ २९५ सादड़ी का मतभेद तथा उनके समाज की निन्दा की गई थी । वह किताब सादड़ी के मूर्तिपूजकों के हाथ में आई, पढ़कर उनके क्रोध का कोई पार न रहा। वे अपने समाज को एकत्रित कर सबकी सम्मति के साथ एक चाकरीदार- सेवग के साथ स्थानकवासी समाज के अग्रेसरों को कहलाया कि आपने द्वेष बढ़ाने वालो पुस्तक को प्रकाशित किया है । या तो आप शास्त्रीय प्रमाणों से यह सिद्ध करें कि शत्रुजय गिरनार जाने वाले नर्क में जाते हैं, नहीं तो इस किताब को भंडार में दाखिल कर दो, वरना आपके हक़ में ठीक न होगा । इसके उत्तर में कई निष्पक्ष लोगों ने तो कहा कि यह किताब किसने छपाई है और ऐसी किताब छपाकर आपस में क्लेश क्यों पैदा किया जाता है ? पहिले भी धार्मिक झगड़े के कारण १२ वर्ष तक आपस में रोटीबेटी व्यवहार बन्द रहा था । किन्तु उन बिचारों की कौन सुनता था जो किताब छपवाने वाले कुम्हारोपासक थे, उन्होंने कहलाया कि आप की ओर से भी 'प्रतिमा छत्तीसी' नामक पुस्तक निकली है. फिर हमको क्यों दबाते हो ? हमने तो 'प्रतिमा छत्तीसी' के उत्तर में ही यह पुस्तक छपवाई है । प्रत्युत्तर में मूर्ति पूजकों ने कहलाया कि 'प्रतिमा छत्तीसी' में आपकी या आपके समाज की निन्दा का एक शब्द भो नहीं है । यदि आपको 'प्रतिमा छत्तीसी' के जवाब में ही लिखना था तो आप गयवरचंदजो के लिए लिख सकते थे, किन्तु शत्रुजय गिरनार या पूर्वाचार्यों के लिये लिखने का आप को क्या अधिकार था ? इत्यादि । अन्त में सादड़ी के मूर्ति पूजक समाज ने सादड़ी के स्थानक वासियों के साथ रोटी तथा बेटी व्यवहार किस तरह बन्द कर
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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