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सिद्ध प्रतिमा मुक्तावली
पुस्तक बड़ी उपयोगी है, किंतु इसमें भाषा की त्रुटिये सर्वत्र पाई. जाती हैं। मैं जानता हूँ कि यह व्याकरण ज्ञान का अभाव हो है । यदि यह पुस्तक किसी हिन्दी के सुलेखक से शुद्ध करवा दी जावे तो यह सोने में सुगन्ध वाला काम कर निकलेगी ।
श्रोसियां में मुनिजी ने योगिराज की सेवा में एक मास से अधिक ठहर कर बहुत कुछ जानकारी प्राप्त करली, जिसमें गच्छ गच्छान्तर का हाल तो आपने बिल्कुल ही अपूर्व सुना था । इसके सुनने से आपको प्रत्येक गच्छ की समचारियें पढ़ने की भी इच्छा हुई, जो योगिराज ने अन्य स्थानों से मंगवा कर आपको पढ़ने को दी। आपने उन सब समाचारियों को पढ़ने का निश्चय भी कर लिया तथा विहार में साथ भी ले जाने का विचार कर लिया । सियाँ तीर्थ पर एक काठियावाड़ी चुन्नीलाल भाई नामक मुनीम था, वह अच्छा धार्मिक और साधुओं का पूर्ण भक्त था । मन्दिर के एक तरफ पुरानी धर्मशाला थी । एक तरफ नई धर्मशाला भी बन रही थी, जिसके पोल, दरीखाना, कुछ कोठरियां और एक चौबारा तो बन चुके थे, किंतु अभी बहुत सा काम अधूरा ही पड़ा था । मुनिश्री ने इस तीर्थ के उद्धार के लिए कई उपाय सोचे । आखिर आपने यह निश्चय किया कि प्रथम तो सामयिक पत्रों में इस विषय के लेख प्रकाशित करवाये जांय, पुस्तकें छपवा कर उपहार के तौर पर वितरण कर दी जाय और यहाँ पर एक विद्यालय की स्थापना की जाय । अतएव मुनिजी ने अपना यह विचार गुरुवर योगीराज के पास आकर पूर्ण रूप से कह सुनाया। आपको इस योजना पर वे बहुत ही प्रसन्नयेर चुन्नीलाल भाई को बुला कर कहा कि मुनिजी ने तीर्थ