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आदर्श-ज्ञान द्वितीय खण्ड
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उद्धार के लिये बहुत अच्छी योजना तैयार की है। इसमें तुमको हर प्रकार से सहायता देनी चाहिये । मुनीम चुन्नीलाल भाई ने भी योगीराज का हुक्म सहर्ष शिरोधार्य कर लिया। ___ज्येठ शुक्ला पूर्णिमा का दिन था। इधर से तीवरी वाले लंदाजी वगैरह कई श्रावक मुनिश्री को लेने के लिये आये, उधर फलोदी से फूलचन्दजोगोलेछा, जोगराजजी वेद, मेघराजजी मुनीयत, माणकलालजी कोचर इत्यादि बहुत से श्रावक तीर्थयात्रार्थ एवं मुनिश्री के दर्शन के लिये आये थे। सबकी इच्छा थी कि मुनिजी का व्याख्यान हो। योगीराज से प्रार्थना करने पर आज्ञा भी मिल गई । फिर तो भला देर ही क्या थी ?
मुनिश्री ने द्रव्यानुयोग अथांत् षद्रव्य के द्रव्य गुण पर्याय पर सुन्दर एवं सारगर्भित व्याख्यान दिया । अन्त में श्रापने फ़रमाया कि सामयिक, पौषध, तपश्चर्या और देवपूजा करने से तो करने वाला आदमी एक अपना ही कल्याण कर सकता है, किंतु तीर्थोद्धार करवाने से करवाने वाला अपने कल्याण के साथ अनेकों का कल्याण कर सकता है। क्योंकि तीर्थ अनेक वर्षों तक अनेक भव्य जीवों का कल्याण करने में कारण बन जाता हैं। ओसियां जैसा एक प्राचीन महत्वशाली तीथे जो श्रोसवालों की जन्म-भूमि होने पर भी कई लोगों के लिये अभी तक अपरिचित ही बना हुआ है यह कितने दुःख की बात है । अतः प्रत्येक व्यक्ति और विशेषतः इस तीर्थ के कार्यकर्ताओं का मुख्य कर्तव्य है कि वे तन, मन और धन से इस तीर्थ को प्रसिद्धि में लावें । मैंने इस तीर्थ के लिये कुछ योजना तैयार कर गुरुवर योगीराज के सामने निवेदन किया था और आज आपसे भी कहे देता हूँ कि प्रथम तो