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________________ २७७ पूज्यजो का पश्चाताप है, पर क्या करूं ? जोधपुर वालों का तार देख कर उस समय मुझे क्रोध आगया था और मैंने शोभालालजी को भेज कर उनसे कहला दिया था इत्यादि यह मेरे उस क्रोध का ही फल है । गेनमल जी ने उत्तर दिया-"पूज्य महाराज ! आप भी गजब कर रहे हैं कि साधुओं से जबरन लिखित करवाते हैं। क्या पहिले भी कभी ऐसा लिखित किसी पूर्व पूज्यों द्वारा करवाया गया था ? शोभालालजी महाराज ने तो आपके दबाव से लिखत कर दिया, किंतु गयवर चन्दजो ऐसे नहीं थे कि वे इस प्रकार लिखत कर देते । मेरा तो ख्याल है कि यदि अब भी कोशिश की जावे तो गयवरचन्दजी पुनः पा सकते हैं।" - पूज्य महाराज ने कहा, "गेनमलजी ! गयवरचंदजी केवल विनयवान ही नहीं पर एक विद्वान हमारे सलाहगीर साधु था। मैंने कई बार उसे उपालम्भ दिये, पर उसने मेरा एक बार भी अनादर नहीं किया। मैं कभी नहीं चाहता था कि मेरा ऐसा साधु चला जाय । पर क्या कहा जाय वह समय ही ऐसा था खैर अब भी कोई उपाय हो तो आप ही करें और गयवरचंदजी को किसी तरह वापिस लावें।" ____ इधर रतलाम, उदयपुर, बीकानेर आदि प्रामों के श्रावक पूज्य महाराज के दर्शनार्थ आये थे। जब उनके सामने गयवरचंदनी की चर्चा चली तो उन लोगों को भी उनका चला जाना नागवार गुजरा। इस पर गेनमलजी ने कहा कि "यदि आप लोग मेरे साथ चलें तो सम्भव है कि मैं समझा-बुझा कर गयवरचंदजी को एक दफे पूज्यजी की सेवा में लाकर हाजिर कर सकुँ" पूज्य महाराज ने भी इसी विषय का उपदेश दिया। जिससे दो १८
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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