________________
३६ प्रोसियाँ में स्था० श्रावकों का श्रागमन
जब पूज्यजी ने यह समाचार सुना कि जोधपुर में गयवरचंदजी अलग हो गये और मोड़ीरामजी आदि सब साधुओं ने फलौदी की ओर विहार कर दिया है, तो उन्हें बहुत पश्चात्ताप हुआ कि मैंने गुस्से के वशीभूत होकर एक सुयोग्य, होन हार साधु को अपने हाथों से खो दिया, किंतु अब पछताये क्या होता है, जब चिड़िया चुग गई खेत । खैर, गयवरचंदजी के विषय में पूज्यजी महाराज के पास समय समय पर समाचार पहुँचते ही रहते थे । पूज्यजी ने यह भी सुना कि तोवरी के देशी समुदाय वालों ने विनती कर गयवरचंदजी का चतुर्मास तीवरी में कराने का निश्चय किया है और इस समय वे श्रीसियां गये हैं। उन्हें यह भी मालूम हुआ कि वहां एक संवेगी साधु है, जो १८ वर्ष ढूँढ़ियों में रह कर संवेगी हुआ है । शायद गयवरचंदनी उनके पास संवेगी हो जावें ऐसा अनुमान लगाया गया किंतु फिर उन्होंने सुना कि अभी तक तो उन्होंने अपने मुँह पर मुँहपत्ती बांध रखी है; और सम्भव है कि वे र्तवरी का चतुर्मास इसी वेष में व्यतित करेगा ।
पूज्य महाराज विहार करते हुए जावद पधारे। वहाँ पर गेनमल जी चौधरी ने उन्हें उपालम्भ दिया कि आपने थोड़ी सी बात के लिए गगवरचंदजी जैसे सुशिक्षित और सुयोग्य साधु को समुदाय से अलग कर दिया यह ठीक नहीं किया, क्योंकि आपके समुदाय में कोई ऐसा एक भी साधु नहीं है जो आपकी पूज्यपदवी को संभाल सके । केवल गयवरचंदजी ही इस पद के योग्य थे ।
1
पूज्यजी ने कहा, गेनमलजी ! इस बात का तो मुझे भी रंज