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________________ आदर्श-ज्ञान द्वितीय खण्ड २७८ उदयपुर के, दो रतलाम के, दो बीकानेर के और एक जावद का, कुल ७ श्रावक जावद से रवाना होकर श्रोसियाँ आये । ___ वहाँ पहिले तो उन्होंने जाकर मन्दिर में श्रीमहावीर देव की मूर्ति के दर्शन किए । उस शाँत मुद्रा मूर्ति का उन लोगों पर इतना जबरदस्त प्रभाव पड़ा कि वे इस बात को अच्छी तरह समझ गये कि मूर्ति में मनुष्य का कल्याण करने की अपूर्व क्षमता है । मन्दिर से बाहर आते ही योगिराज के दर्शन हुए। योगिराज ने कहा, "क्या गयवरचंदजो को लेने के लिये आये हो ?" श्रावकों ने उत्तर दिया, हाँ। योगिराज ने कहा कि “गयवरचंदजी ऊपर बैठे हैं आप खुशी से उनको समझा बुझा कर ले जा सकते हैं।" योगिराज को गयवरचन्दजी के विषय में पूर्ण विश्वास था कि उनक हल्दी के समान रंग हल्का नहीं, अपितु क्रीमची रेश्म के समान रंग पक्का है । दूसरा उनकी परीक्षा भी हो जायगा। श्रावक चल कर हमारे चरित्र नायकजी के पास आये । बन्दन के बाद पहिले तो वे इधर उधर की बातें करने लगे। फिर वे अपने मतलब की बात पर आये और बोले कि "महाराज ! आप इतने समझदार और विद्वान् हैं पूज्यजी महाराज की भो आप पर पूर्ण कृपा है । फिर इन सब बातों के होते हुए भी आपने यह क्या किया ? आप किस खान दान के हैं तथा आपने किस त्याग और वैराग्य के साथ दीक्षा ली थी, इन बातों का जरा आप विचार कीजिए।" मुनिजी ने उत्तर दिया, "यह कार्य अशिक्षित और ना समझ लोगों का नहीं अपितु समझदार और विद्वानों का ही है । जो खामदानी, के त्यागी वैरागी और आत्मार्थी होते हैं, वह लोग ही
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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