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ओसियां तीर्थ की यात्रा
नायकजी ने विचार किया कि आज शिष्य बनाने के लिए जहाँ अन्य साधु कई प्रपंच करते हैं पर यहाँ इन योगीराज को मेरे जैसा घड़ाघड़ाया साधु हाथ लग जाने पर भी कुछ परवाह ही नहीं है यह वास्तव में श्रात्मार्थी मुमुक्षु हैं ।
तीवरी वाले श्रावकों और योगिराज के बीच जो बातें हुई उनमें यह तय हुआ कि मुनिराज १२ वर्ष तक मुँहपर मुँहपत्ती बँधी रख कर इसी वेष में सदुपदेश करते रहें। इससे शासन को बड़ा भारी फायदा पहुँचेगा और हम तन मन धन से इनकी सहायता करते रहेंगे । यह बात जब मुनिश्री को सुनाई गई तब आपने भी इसके लिए अपनी सम्मति दे दी ।
मुनिश्री को कुछ कविता करने का भी शौक था। आप प्रतिदिन एक नया स्तवन बना कर ही मन्दिर में जाकर प्रभु की स्तवना किया करते थे । एक दिन जब आप प्रतिमा-छत्तीसी की रचना कर मन्दिर में जाकर बोल रहे थे, उस समय योगिराज भी मन्दिर में उपस्थित थे । जब उन्होंने इसे ध्यान लगा कर सुना तो उनके आश्चर्य का पार नहीं रहा क्योंकि इस एक छोटीसी कविता में मूर्ति विषय के ३२ सूत्रों के स्थान बतलाये गये थे जो कोई साधारण बात नहीं कही जा सकती; मन्दिर से बाहर आने के बाद योगिराज ने अपनी नोटबुक में प्रतिमा - छत्तीसी ज्यों को त्यों उतारली ।
ओसियाँ तीर्थ का काम उस समय फलौदी निवासी सेठ: फूलचन्दजी गोलेच्छा देखते थे। आप धार्मिक काययों में विशेष भाग भी लेने वाले अच्छे धर्मात्मा पुरुष कहलाते थे । किन्तु ओसियाँ तथं की आय - व्यय के हिसाब का लिए न तो उस तीर्थ पर