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________________ दर्श - ज्ञान द्वितीय खण्ड २७४ कोई पेट थो न रसीद बुक थी और न था कोई हिसाब किताब | यही कारण था कि लोगों में अफवाएँ फैल गई थी कि ओसियाँ तीर्थ के हजारों रुपयों का रावन हो रहा है । उनका कोई हिसाब भी नहीं है । इस अफशर का दूसरा कारण यह भी था कि फलोदी की कई साध्वियों ने जो दीक्षा लेते समय रकम जमा कराई थी वह भी गायब थी। तीसरा, कई गुजराती भाइयों की शिकायतें भी थी कि ओसियाँ तीर्थ के नाम से जो रकम इमसे इकट्ठी की गई है उसकी न तो हमको रसीदें मिली हैं और न हमें यह हिसाब ही बतलाया गया है कि हमारी रकम कहाँ लगाई गई है। योगिराज ने इन सबको जान कर सेठजी को उपदेश दिया कि इस तीर्थ पर एक पेढ़ी खोज दी जाय, जिससे श्राय व्यय का हिसाब साफ रहा करे । सेठजी ने योगीराज की योजना स्वीकार करके पेढ़ी खोलने का निर्णय कर लिया गया। इससे एक बात यह भी हुई कि कार्यकर्त्ताओं ने सोचा कि यहाँ पेढ़ी खुल जाने से इसके पूर्व का हिसाब कोई नहीं पूछेगा और अपनी साहूकारी का सिक्का ज्यों का त्यो बना रहेगा ।. बैसाख शुक्ला १५ को श्री मन्दिरजी में बृहत् शान्ति स्तोत्र पढ़ा कर उसी दिन पेढी की स्थापना करवाई गई । वहाँ का मन्दिर महावीर स्वामी का था और उसकी प्रतिष्ठा आचायं रत्नप्रभसूरि ने करवाई थी । अतः उनकी स्मृति के लियेही पेढी का नाम भी " मंगलसिंह रत्नसिंह” रख दिया गया । इधर तो मन्दिर में बड़ी शांति से शान्ति स्नात्र पूजा भणाई जा रही थी, उधर जोधपुर से हमारे चरित्र नायकजी के संसार पक्ष के त्रासाब छोगीबाई वगैरह जो कि कट्टर स्थानकमार्गी थे
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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