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भादर्श -₹ -ज्ञान द्वितीय खण्ड
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पर कह दिया कि ठीक है स्थानकवासी लोग विनती करेंगे तब देखा जायगा । लोड़ा जी ने मुनिश्री का अभिप्राय ले लिया पश्चात् स्थानकवासियों के पास गये । और उन्हें सर्व प्रकार समझाया कि"ये प्रदेशियों के विद्वान् साधु इस प्रकार सहज ही में अपने हाथ लग गये हैं। यदि आप लोग इनका चातुर्मास यहां करवादें तो बड़ा ही लाभ का सुअवसर है। आपके विद्वतापूर्ण भाषण और सूत्रों को श्रवण करने का सौभाग्य प्राप्त हो गया है । इस अवसर पर यहां प्रदेशी - साधुओं का भी चतुर्मास है । उनसे बदला लेने का भी यह सुयोग प्राप्त हुआ है । मुनिश्री को यहाँ से किसी प्रकार भी नहीं जाने देना चहिये । इस शुभ कार्य में जो कुछ भी कार्य एवं द्रव्य व्यय होगा सब हम करेंगे। अप तो केवल विनती कर चातुमस मुक़र्रर करवा लें इत्यादि ।
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की ये बातें उन लोगों के मन में उतर गईं। उन सबने मुनिश्रीजी से चातुर्मास तीवरी में ही करने की आग्रह पूर्वक विनती की जिसे मुनिश्रीजी लाभालाभ का कारण जानकर स्वीकार कर ली । इससे उन लोगों में अपार हर्ष छा गया किन्तु प्रदेशीसमुदाय वालों को मुनिश्री का तीवरी चतुर्मास होना एक दुःख का कारण अवश्य था पर वे विचारा इसक उपाय भी तो क्या कर सके क्योंकि घर की फूट का यही नतीजा हुआ करता है ।