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________________ २६९ चतुर्मास की धाग्रह पर हुए । आपके इन व्याख्यानों से जनता का मानस आपके चरणों में भूकगया वह जोग आपको कब जानेदेने वाले थे। __तत्पश्चात् लोढ़ाजी ने मुनिश्री से निवेदन किया कि कम से कम एक चतुर्मास आपका यहां हो जाय तो यहां की जनता को बड़ा भारी लाभ पहुँचेगा । इस समय यहां ३० घर स्थानकवासी प्रदेशी समुदाय के हैं जो आपके विरुद्ध हैं । १२५ घर देशी स्थानक समुदाय के हैं और ये लोग मूर्तिपूजक समुदाय से मिलते-जुलते रहते हैं । मन्दिर एवं वरघोड़ा में इन लोगों का आना-जाना भी है । इस समय आपके मुख पर मुंहपट्टी बंधी हुई है आप देशी स्थानकवासियों की प्रार्थना स्वीकार कर यहां चतुर्मास व्यतीत करें। आपके इस प्रकार चतुर्मास करने से उन लोगों पर भी अधिक असर पड़ेगा। इस पर मुनिश्री ने कहा कि मेरा निश्चय तो यह है कि पहले ओसियाँ जाकर योगिराज श्री का दर्शन करूँ और तत्पश्चात् चातुमाम का निर्णय करूँ। - इस पर लोदाजी ने कहा-आप इसकी फिक्र न करें। हम सब लोग आपके साथ चल कर ओसियां की यात्रा और योगि राज से भेंट करवा देंगे पर इस समय स्थानकवासियों का प्रेम आपकी ओर उमड़ा हुआ है। अतः चातुर्मास की प्रार्थना स्वीक र करना ही लाभ दायक है। हम मूर्तिपूजक तो आपके भक्त हैं ही खर्च इत्यादि जो कुछ होगा वह सब हम लोग करेंगे ही किन्तु चातुर्मास स्थानकवासी लोगों की प्रार्थना को स्वीकार कर किया जाना अत्यन्त सुन्दर फल का द्योतक है। लोढ़ाजी के इस विशेष आग्रह पर मुनिश्री ने स्वानगी तौर
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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