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________________ २४९ जोधपुर में मूर्ति पूजा कोई श्रावक जिन प्रतिमा का पूजन करे तो उसको क्या फल होता है ? इस पर गयवरचन्दजी ने अपने गुरु महाराज से कहा कि आप उत्तर दिलावें । श्रावक - नहीं, मैंने तो प्रश्न आप से ही पूछा है, अतः आप ही उत्तर दिलावें । मोड़ी-अभी व्याख्यान बॅच रहा है, बीच में प्रश्न करने की क्या आवश्यकता है। यदि प्रश्न पूछना है, तो दोपहर को पूछना | श्रावक - प्रश्न का खुलासा करना भी व्याख्यान ही है । इस विषय में बहुत से लोगों को शंका है; अतः व्याख्यान के प्रश्न का खुलासा व्याख्यान में ही होना चाहिए । साथ में दो-चार श्रावक और भी बोल उठे कि महाराज प्रश्न का उत्तर देने में क्या आपत्ति है; यदि आप जैसे विद्वानों से ही दिल की शंका नहीं पूछी जावे, तो और किससे पूछी जाय । तब गुरु महाराज ने गयवरचन्दजी को इशारा किया कि प्रश्न का उत्तर संक्षिप्त में दे देवें । गयवरचन्दजी ने सोचा कि यह प्रश्न तींवरीवाजों का चलाया हुआ है, और इसका उत्तर देने में अभी शोरगुल मच जायगा । अतः इस प्रश्न का उत्तर गुरु महाराज ही दें, तो ठीक है; एवं श्रपने पुनः गुरु महाराज से विनय की कि इस प्रश्न का उत्तर आप ही फरमावें तो ठीक रहेगा । मोड़ीरामजी जानते थे कि यह प्रश्न चर्चा का है, इसमें तर्क
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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