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________________ आदर्श - ज्ञान २५० युक्ति का काम है । यदि श्रावक तर्क करेंगे, तो मैं उसका समा अतः इस प्रश्न धान कर सकूंगा या नहीं, इसमें मुझे संदेह का उत्तर गयवरचन्दजी ही दें, तो ठीक है। बस, गुरु महाराज ने तो अपना पीछा यह कह कर छुड़ा लिया कि नहीं, श्रावक उत्तर तुम से ही चाहते हैं, इसलिए संक्षेप में उत्तर दे दो । गयवर - अच्छा भाई श्रावकजी। जिन - प्रतिमा का पूजन वन्दन करते हैं, वह प्रतिमा को क्या समझ कर करते हैं ? श्रावक - प्रतिमा को प्रतिमा समझकर ही नमस्कार करते हैं । गयवरः - नमस्कार करना तो किसी की ओर पूज्यभाव - ये बिना नहीं होता है; अतः नमस्कार करने वाले का प्रतिमा के प्रति पूज्यभाव अवश्य होता होगा, तब ही वह नमस्कार करता है । अब मैं यह पूछता हूँ कि उस प्रतिमा के लिए पूज्यभाव क्यों आता है ? श्रावक : - जिन - प्रतिमा होने से । गयवरः - जिन - प्रतिमा देख पूज्यभाव जिन के प्रति श्राता है या प्रतिमा के प्रति ? श्रावक - जिनके प्रति । गयवर — जिनके प्रति पूज्यभाव आना और नमस्कार करना यह दर्शन-शुद्धि यानि समकित निर्मलता का ही कारण है । श्रावक : - जिन - प्रतिमा को नमस्कार एवं पूजन करने से समकित निर्मल होता है, तब तो हमेशा जिन-प्रतिमा को नमस्कार और पूजन करना चाहिये ? गयवर - मना कौन करता है 1
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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