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________________ २४१ तेरह पंथियों के साथ चर्चा गयवर०-यदि कोई रोकना चाहे तो हम रुक भी सकते हैं। आप लोग तो इतनी दूर से पूज्यजी की सेवा करने को आये हैं, और हमें तो अनायास ही ऐसा संयोग मिल गया है। अतः हम लोग भी पूज्यजी की सेवा करेंगे। पूज्यजी समझ गये कि यह वही गयवरचन्दजी दीखता है कि जिस का एक वर्ष पूर्व गंगापुर में चतुर्मास था। उन्होंने श्रावकों से और कहा कि इन्हें चले जाने के लिये कह दो ! _____ श्रावकः-आप पधारें, वरना दिन चढ़ जावेगा। गयवर०-आपने शुरु में जो वचन निकाला, उसकी माफी मांग लें तो हम आगे जायेंगे, अन्यथा पज्यजी की सेवा में गंगापुर ही चलेंगे। .. पज्यजी:-के की माफी मांगां, थां के जाणो हो तो जाओ। इस प्रकार कहकर वे गंगापुर की ओर चल दिए। इतने में गंगापुर के लोग भी सामने आगये । तब गयवरचन्दजी ने गुरु महारज से कहा कि आज अपने को शकुन अच्छे नहीं हुए हैं, अतः आगे नहीं बढ़कर वापिस गंगापुर चले चलना ही ठीक है। ____गुरुजी:-शकुन तो ठीक ही हैं, आगे चलने में कोई हर्ज नहीं है; परन्तु यदि तुमको तेरह पन्थियों से चर्चा करनी हो तो बात दूसरी है। गयवर-जी हां, यही बात है ! गुरुजी:-तब चलो गंगापुर । बस आगे आगे पूज्यजी और पीछे पीछे मोड़ीरामजी । गंगापुर के समीप गये, तो आपके श्रावकों को मालूम हुआ कि मोड़ीरामजी महाराज वापिस पधार रहे हैं। अतः वे लोग
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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