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________________ ३४-हमारे चरित्रनायकजी तथा तेरहपंथी मोडीरामजी, गयवरचन्दजी, गबुजी, तख्तमलजी तथा रूपचंदजी ने गंगापुर से मारवाड़ की ओर बिहार कर दिया। करीब २ कोस गये होंगे, कि रास्ते में तेरहपन्थी पूज्यजी का लश्कर मिला। उसमें लगभग एक सौ साधु, साध्वी और दो सौ उनके भक्त, भक्तनियें होंगी । साधुओं को जाते देख किसी ने कहा कि पूज्यजी भगवान का तप-तेज देख टीला भाग छूटते हैं। इस पर हमारे चरित्रनायक जी वहीं ठहर गये। थोड़ी देर में पज्यजी आये और कहने लगे कि थे किणारा टोलारा साधु हो ? गयवर०-हम पूज्य श्रीलालजी महाराज के समुदाय के हैं। पूज्यजी०-थांको कांई नाम है ? गयवर०-हमारे गुरु महाराज का शुभ नाम मोडीरामजी महाराज है। पूज्यजी-पण थांको कोई नाम है ? गयवर०-मेरा नाम गयवरचन्द है। तब पूज्यजी ने अपने श्रावकों से धीरे से कहा कि इनको कहदो कि यहां क्यों ठहरे हो, आप खुशी से चले जावो । तदनुसार तेरह पन्थी श्रावकों ने कहाः-आप यहां क्यों ठहरे हो, प्राम दूर है, दिन चढ़ जावेगा तो आपको धोवण पाना नहीं मिलेगा, जाओ आपको कोई नहीं रोकता है, खुशी से चले जाओ।
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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