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वेष त्याग की चर्चा तो इस बात के लिए किसी भी हालत में साक्षी नहीं देती है । अतः मैं इस वेष बन्धन में रहना बिल्कुल नहीं चाहता हूँ। ___मोड़ीरामजी-तुम्हारी तुम जानो, मैं तो वेष का त्याग करना किसी भी हालत में ठीक नहीं समझता हूँ । हाँ तुम इस वेष में रहो तो मैं तुम्हारे पास रहने को तैयार हूँ। ___ मोडीरामजी के निराशा मय वचन सुन कर हमारे चरित्रनायकजी पुनः कर्मचन्दजी के पास आये और सब हाल कह सुनाया। इसी बीच में शोभालालजी बोल उठे कि मैं पज्यजी महाराज को वचन दे कर आया हूँ, अतः एक बार तो मैं उनके पास अवश्य जाऊँगा । तब कर्मचन्दजी ने कहा कि गयवरचंदजी तुम फिलहाल ठहरो, जल्दी मत करो, ठहरने से सब अच्छा होगा। ऐसी हालत में भी हमारे चरित्र नायक जी अकेले ही यह कार्य कर सकते थे; किन्तु भविष्य की आशा और सब की मान्यता देखकर आपने फिलहाल इस कार्य को स्थगित कर दिया।
शोभालालजी ने गयवरचन्दजी से पूछा कि तुम हमारे साथ पूज्यजी के पास चलते हो, या मोड़ीरामजी महाराज के साथ मारवाड़ की ओर विहार करेंगे ? गयवरचन्दजी ने कहा कि मैं तो गुरु महाराज के साथ मारवाड़ की ओर विहार करूंगा। बस शोभालालजी ने पूज्यजी की ओर, मोड़ीरामजी तथा गयवरचन्दजी वगैरह ने मारवाड़ की ओर, तथा कर्मचन्दजी ने उदयपुर की ओर विहार कर दिया !