SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 272
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९३ मूर्तिपूजा की चर्चा सेठजी-उनको तो करेमिभंने सामायिक उच्चराई जाती है। मुनिजो-मूर्ति की भी मंत्रों द्वारा प्रतिष्टा की जाती है। सेठजी-जब मूर्ति सिलावट के यहाँ पड़ी रहती है, तब उसकी कोई आशातना नहीं टालते हैं, किन्तु मन्दिर में आने पर आशातना क्यों टाली जाती है ? . मुनिजी-एक पाट गृहस्थों के यहाँ रहता है, तो उसकी कोई आशातना नहीं टालता है, वही पाट मुनि मांग के लाता है, तब उसकी आशातना क्यों टाली जाती है ? . इस प्रकार वादी प्रतिवादि के रूप में सेठजी ने बहुत से प्रश्न किए और मुनिजा ने उसके बराबर उत्तर भी दिए । सुननेवालों को इस विषय का इस प्रकार से अपूर्व बोध भी होगया । अन्त में सेठजी ने कहा कि महाराज आपके तो रोम रोम में मूर्ति घुस गई मालूम होती है ? मुनिजी-किसकी मूर्ति ? सेठजी-जिन मूर्ति । मुनिजी-सेठजी ! फिर तो चाहिये ही क्या, यदि मूर्ति के साथ जिन नाम लगा हुआ है, और वह मेरे रोम २ में घुस गया है, तो मैं मेरा अहो भाग्य मानूंगा।। सेठजी-ठीक है महाराज । इस प्रकार कह कर सेठजी चल दिए और फिर दूसरे सब लोग भी डठकर चले गये। दूसरे दिन व्याख्यान समाप्त होने के बाद मुनिश्री गोचरी को गये । रास्ते में सेठजी का मकान आया और सेठजी ने भी आमन्त्रणकिया मुनिश्री सेठजी के मकान पर गये, तो आप एक १३
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy