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आदर्श
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है ? किन्तु दुनिया में कहावत है कि 'पगें बलती नहीं, पर डूंगर बलती दीखती है' ।
सेठजी - हाँ, ऐसे तो आडम्बर सब में ही है, किन्तु मन्दिर मार्गी एक पालकी में भगवान की मूर्ति रखकर ग्राम में क्यों फिराया करते हैं, इसमें क्या धर्म है ?
मुनिजी – वे लोग बड़े ही परोपकारी हैं; क्योंकि ऐसा करने से जो लोग मन्दिर में जाकर भगवान के दर्शन नहीं करते हैं, उन जिनेश्वर के माने वालों को सालमें एक दो बार तो दर्शन हो जाय, शायद उनका ऐसा ही इरादा हो ।
सेठजी - ठीक है, आपने खूब युक्ति बतलाई, परन्तु जब मूर्ति को वंदन - नमस्कार करते हैं, तो उनको बनाने वाले सिलावट को वंदनपूजन क्यों नहीं करते ?
- ज्ञान
मैना जैसे साधु को वन्दन नमपैदा करने वाले उसके मातानमस्कार क्यों नहीं करते
मुनिजी -- जब आप जाट, स्कार करते हो, तो उस साधु को पिता, भील, मैणा आदि को वन्दन इसका क्या कारण है ?
सेठजी - जब मूत्ति सिलावट के यहाँ रहती है, तब तो उसको कोई नहीं पूजते, किन्तु मन्दिर में लाकर रखते ही सब लोग पूजने लग जाते हैं, इसका क्या कारण है ?
मुनिजी -- जब दीक्षा लेने वाला घर में रहता है तब तो कोई भी उसको वन्दन नहीं करते हैं; किन्तु साधु का वेष पहिनते ही सब लोग उसको वन्दन करने लग जाते हैं । तो क्या दीक्षा कोई श्राकाश में घूमती थी कि उसके शरीर में आकर घुस गई और वह क्षण भर में ही वन्दनीय हो गया ।