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आदर्श-ज्ञान
१९४ गली में क्या देखते हैं कि एक ताक में श्री केसरियानाथजी को एक बड़ी तस्वीर थी उस पर केसर के छींटे लगे हुए थे, तथा पास में एक धूपदाना पड़ा था। एक ओर दीपक भी रखा हुआ था मुनिश्री ने यह सब देखकर सेठजी को बुलाया और पूछने लगे सेठजी ! यह क्याहै ?
सेठजी-महाराज हम तो गृहस्थ हैं। ... मुनिजी-पर आप तो हमारी समुदाय के धोरी श्रावक हैं, आपके यहाँ यह क्यों ?
सेठजी-महाराज मैंने तो शत्रुजय गिरनार तीर्थोकी दो बार और केसरियाजी की पांच बार यात्रा की है; वहाँ से यह तस्वीर लाया हूँ। इसकी हमेशा धूप दीप और केसर से पूजा की जाती है। ____ मुनिजी-आप गृहस्थ हो, आपके लिए तीर्थ यात्रा और द्रव्य पूजा वगैरहः सब को स्वतन्त्रता है, कसर तो हम लोगों ने ही किया है, जो हमको मूर्ति का नाम लेने तक का भी अधिकार नहीं है। - सेठजी-महाराज हम गृहस्थ तो सब तरह से स्वतंत्र है, किन्तु आपने तो पांच महाव्रत धारण किए हैं।
मुनिजी-जिन मूर्ति का नाम लेने से या दर्शन करने से क्या हमारे पांच महाव्रतों में से एक-दो महाव्रत भंग हो जाते है?
सेठजी-महाव्रतों का भंग तो नहीं होता है, किन्तु श्रद्धा में दोष लगता है। . मुनिजी-आपकी और हमारी श्रद्धा एक है या भिन्न २ ? ... सेठजी-श्रद्धा तो एक ही है।