________________
१८९
रतलाम में मूर्ति की चर्चा रूप-यह कितना ही लिखा पढ़ा हो, पर आपके सामने कुछ भी नहीं कर सकेगा। आप हमेशा दोपहर को पधारा करें। पूज्यजी महाराज ने इनको आपके पास इसीलिए ही तो भेजा है। शोभालालजी के एक मास यहाँ रहने से उनकी श्रद्धा मजबूत हो गई, तो गयवरचन्दजी की तो क्या बात ?
सेठजी-नहीं, शोभालालजी और हैं, और गयवरचन्दजी कुछ और ही हैं । शोभालालजी को तो समझा दिया, पर इनको समझाने में बड़ी भारी कठिनाई होगी।
रूप०-खैर, बन सके वहाँ तक तो प्रयत्न करना ही चाहिए;. गदि फिर भी नहीं सममें तो कमों की गति है।।
सेठजी-हाँ. इसके अतिरिक्त तो हम लोग कर ही क्या सकते हैं, भगवान महावीर भी गौशाला जमाली को नहीं समझा सके थे। खैर चलो।