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आदर्श-ज्ञान
१८८ कह सकता हूँ। आपने तो बड़े २ साधुओं की सेवा कर ज्ञान उपलब्ध किया है, किन्तु मैं तो अभी नव दीक्षित हूँ, तथा आपके हाथों में ही मैंने दीक्षा ली है । नागौर में आपने जो शब्द पूज्य जी महाराज को कहे थे, वे भी मैं भूल नहीं गया हूँ, और श्रापको भी याद ही होंगे। ___ सेठ.-महाराज आपने थोड़े दिनों में ही बहुत ज्ञानाभ्यास किया है, आपकी तर्क शक्ति देखकर मुझे बहुत ही प्रसन्नता होती है; किन्तु एक अर्ज है कि आप मेरे सामने कुछ भी कहें, पर श्रद्धा तो अपने समुदाय की है , वही मजबूत रखें। वीतराग का धर्म दया में है, हिंसा में तो किसी हालत में भी धर्म हो ही नहीं सकता । तथा भगवान की आज्ञा-प्रमाणे यदि कोई संयम पालने वाला है, तो वह एक स्थानकवासी समुदाय ही है। आप खुद समझदार हैं, मैं आपको अधिक क्या कहूँ । बस, आज तो समय अधिक हो गया है, आपके भी पूँजन पडिलेहन का समय आ गया। हो सका तो कल फिर सेवा में हाजिर होऊँगा । ___ सेठजी वहाँ से उठकर बाहर गये और रूपचन्दजी, इन्द्रमल. जी आदि को कहने लगे कि यदि गयवरचंदजी समुदाय में रह गये, तो पूज्य पदवी के अधिकारी होंगे। क्योंकि आप इस पद के लिए सर्वथा योग्य हैं। किन्तु मुझे इनकी श्रद्धा देखकर शंका होती है कि ये समुदाय में रहेंगे या मूर्तिपूजक बन जावेंगे।
रूपचंद०-नहीं सेठ साहब, आप इनको पक्के मजबूत कर दिरावें । . सेठजी०-आप सुन ही रहे थे कि इनके सामने मेरी युक्ति कुछ काम नहीं देती थी।