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रतलाम में मूर्ति की चर्चा
सेठ०-यह तो जैसे आज-कल राजा महाराजाओं के मृत्युस्थान पर चबूतरा बनवाते हैं या वीरता से मरने वालों के पीछे छत्री बनवा उनकी मूर्ति या पादुका रखी जाती है, इसी प्रकार तीर्थंकरों के भक्तों ने भी तीर्थंकरों के पीछे थड़ा इत्यादि बनवा दिया होगा । बाद में संभव है इसमें विशेषता हो गई हो और थड़ों के स्थान पर मन्दिर बनवा कर मूर्तियाँ स्थापित करदी गई हों; पर उसमें धर्म पुण्य तो नहीं समझा जाता है न ? ____मुनि०-थड़े, छत्रियों में पादुका या मूर्ति क्यों स्थापित की जाती है?
सेठ०-उनकी यादगार के लिए ।
मुनि०-बस, तीर्थंकरों के मन्दिर व मूर्तियों की स्थापना भी उनकी स्मृति के लिए ही की जाती है, ऐसा ही मानलें तो इसमें क्या नुकसान है ?
सेठ.-ऐसा मानने में तो कुछ भी नुकसान नहीं है, किन्तु आज तो उन मूर्तियों को पूजा में असंख्य जीवोंकी हिंसा कीजाती है जो कि शास्त्रों के बिलकुल प्रतिकूल है। ___मुनि-सेठजी! मैं स्थानकवासी हूँ, मूर्तिपूजा के विषय में पुष्टि नहीं करता हूँ; किन्तु वादी प्रतिवादी के रूप में यदि आप कहें तो मैं मूर्तिपूजा का पक्ष करके आपके साथ प्रश्नोत्तर कर सकता हूँ। ___ सेठ-मैं इसलिए ही आपके पास आया हूँ और मैंने सुना भी है कि आपकी श्रद्धा मूर्तिपूजा की ओर मुक गई है।
मुनि०-खैर, आप बड़े श्रावक हैं, पूज्यजी महाराज भी भाषका मान रखते हैं । इस विषय में तो मैं आपको कुछ भी नहीं