________________
आदर्श-ज्ञान
१८४
: मुनिजी ! क्या ३२ सूत्रों में श्रावकों का प्रतिक्रमण कहीं आप ने देखा या सुना है ?
सेठ०-क्या ३२ सूत्रों में श्रावक का प्रतिक्रमण नहीं है ? . मुनि०-लो, ये आवश्यक सूत्र मेरे पास हाजिर हैं, देखलो।
सेठ०-यह तो मैंने आज ही सुना है।
मुनि०-ऐसी तो अनेकों बातें ३२ सूत्रों में नहीं हैं, जैसे श्रावक की व्रत ग्रहण विधि, व्रतों को आलोचना और सामायिक पौषध लेना, पारना की विधि; इतना ही क्यों, साधुओं के धोवण छाणने का गरणा तक भी ३२ सूत्रों में नहीं है। .. सेठ-महाराज आपने तो खूब ही शोध खोज की है।
मुनि०-सेठजी ! मैंने घर भी तो इसी शोध के लिए छोड़ा है, अब आप ३२ सूत्रों के लिए भी थोड़ा सा सुन लीजिए; श्री ठाणायांगजी सूत्र के चतुर्थ स्थान में ४ पन्नतिए बतलाई हैं:(१) चन्द्र पन्नति, (२) सूर्य पन्नति, (३) जम्बुद्वीप पन्नति, (४) द्वीप सागर पन्नति यह मूल पाठ है, जिसमें से पहिली ३ को मानना और एक को नहीं मानना; क्या इससे ३२ सूत्र भी पूर्णतया माना कहा जा सकता है ?
सेठ०-इसका क्या कारण होगा ? मुनि--कल्पित मत की कल्पना । सेठ-क्या आप इस मत को कल्पित मत मानते हो ? मुनि:-आपही समझलो। सेठ-मैं तो कल्पित नहीं कह सकता हूँ।
मुनि०-आप नहीं कहें, यह तो बात ही दूसरी है, किन्तु इस मत में सूत्रों के लिए क्या व्यवस्था है, यह तो आप समझ गये