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________________ १८५ रतलाम में शास्त्रों की चर्चा न ? जिन-जिनेन्द्रदेवों के शासन में श्रावकों का इतना उच्चासन होने पर भी, उनके लिए व्रत, प्रत्याख्यान, सामायिक पौषध, प्रतिक्रमण और आलोचना तक का विधान नहीं है, फिर भी ३२ सूत्र मानने का आग्रह करना यह कल्पित मत के अतिरिक्त और क्या हो सकता है । तीन छेद सूत्र और नियुक्तियों के करने वाले एक ही पुरुष हैं, फिर तीन छेद सूत्रों का मानना और नियुक्तियों को नहीं मानना, यह जैन-शास्त्रों के प्रति अन्याय नहीं तो और क्या कहा जा सकता है ? 1 सेठ०—किन्तु जैसा ३२ सूत्रों पर विश्वास है, वैसा नियुक्तियों पर नहीं है । मुनि० - किसका ? सेठ - अपनी समुदाय का । ० मुनि - यह तो बात ही दूसरी है कि एक समुदाय किसी वस्तु का माने या नहीं माने। सूत्रों में दया और दान के स्पष्ठ पाठ हैं, जिसको एक समुदाय ( तेरहपन्थी ) वाले नहीं मानते हैं, इससे क्या हुआ । मैं समुदाय की बात नहीं करता हूँ, किन्तु जैन - शास्त्रों की बात करता हूँ । केवल एक अपनी मान्यता के कारण सूत्रों का अनादर करना और फिर काम नहीं चलने पर तस्करवृत्ति से उन शास्त्रों को मानना, यह कहाँ की समझदारी है। सेठजी, इस पर भी तुर्रा यह है कि नियुक्ति नहीं मानने वाले लोग सम्राट चन्द्रगुप्त के १६ स्वप्नों का अर्थ जो भद्रबाहु स्वामी ने कहा है, तथा जिसकी ३२ सूत्रों में गन्ध तक नहीं है, उसको तो मानते हैं और जो खास कर आगम हैं, उनको नहीं मानते ।
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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