SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 261
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदर्श-ज्ञान सेठजी०-वे तो सूत्र हैं और ३२ सूत्रों में माने गये हैं। मुनिः-हां, सेठ साहिब मुझे यह भी पूछना था कि ३२ सूत्र ही क्यों माने जाते हैं। सेठ०-३२ सूत्र भगवान के फरमाये हुए हैं। मुनि०-क्या भगवान् भी एक सूत्र में दूसरे सत्र की भोलामण देते थे, जैसे भगवतीजी सत्र में पनवणा- सूत्रादि कई सूत्रों की भोलामण है। __सेठ०-भोलामण भगवान् ने नहीं, किन्तु पीछे से लिखने वालों ने दी है। मुनि-लिखने वालों ने कितने सूत्र लिखे थे ? सेठ०-नंदी सूत्र में ७३ सूत्रों के नाम हैं। मुनि०-फिर ३२ सूत्र ही क्यों माने जाते हैं ? सेठ०-परम्परा है। मुनि०-कोई परम्परा वाले यदि २० सूत्र ही मानें तो ठीक है या नहीं ? सेठ-नहीं। मुनि०-तो फिर ३२ सूत्र ही मानना क्यों ठीक है ? सेठ०-आपसे कह तो दिया कि परम्परा है। मुनि०-यह परम्परा कहां से चली और किसने चलाई। सेठ-यह परम्परा लौकाशाह से चली। मुनि-लौकाशाह को कितना ज्ञान था कि जो उसकी चलाई परम्परा को ठीक मान ली जाय और पूर्वधरों की परम्परा का अनादर किया जाय ?
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy