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रतलाम में मूर्ति की चर्चा
____ मुनिजी०-शास्त्रकारों ने जिनप्रतिमा को जिनके शरीर अर्थात् जघन्य सात हाथ और उत्कृष्टी पांच सौ धनुष्य की तथा पद्मासन और ध्यानावस्था की बतलाई हैं, और उन जिनप्रतिमाओं के सामने सम्यग्दृष्टि देवताओं ने नमोत्थुणं दिया है,
अतः वे जिन प्रतिमाएं जिनेश्वरदेव की होना सम्भव है। ___ सेठजी ने इस उत्तर के प्रत्युत्तर में कुछ भी नहीं कहा और आशाश्वति मूर्तियों के विषय में प्रश्न छेड़ा कि अशाश्वति मूर्तियों कब से बनी हैं तथा इस विषय में आपकी क्या मान्यता है ? ___ मुनिजी०-इस विषय का मैंने इतना अध्ययन तो नहीं किया है, पर आचरांग सूत्र की नियुक्ति, जो भद्रबाहुवीमी की रची हुई बतलाई जाती है, उसमें शत्रुजय गिरनार अष्टापदादि की यात्रा करने से दर्शन निर्मल होना बतलाया है। अतः भद्रबाहु स्वामी के पूर्व तीर्थों पर मूर्तियां होना संभव हो सकता है।
सेठजी०-क्या भद्रबाहु स्वामी के नाम पर कही जाने वाली नियुक्ति को आप चतुर्दश पूर्वधर भद्रबाहु कृत एवं प्रामाणिक मानते हो ? ___ मुनिनी-आचार्य भद्रबाहु स्वामी की रची हुई नियुक्ति हो तो मानने में क्या नुकसान है, क्योंकि भद्रबाहु के रचे हुए व्यव. हार सूत्र, वृहत्कल्पसूत्र और दशश्रुत स्कंध सूत्र ३२ सूत्रों के अन्तर्गत माने जाते हैं।
सेठजी०-किन्तु इस बात का क्या प्रमाण है कि नियुक्ति भद्रबाहु स्वामी ने ही रची है ?
मुनिजी०-व्यवहारादि सूत्र के लिये भी क्या सबूत है कि वे भद्रबाहु स्वामी ने ही रचे हैं ?