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________________ भादर्श-ज्ञान १८० रतलाम-यह हमारे चरित्रनायकजी की वैराग्य भूमि है,आप गृहस्थावस्था में दो मास यहां रहे हुए थे, अतः सब लोग आपसे परिचित थे। शोभालालजी का विहार होने के बाद आपका व्याख्यान शुरू हुआ। व्याख्यान में श्राप श्री उत्तराध्ययन सूत्र बांचते थे, क्योंकि शोभालालजी ने उक्त सूत्रों को अधूरा छोड़ा था। उत्तराध्ययन सूत्र एक उपदेशयुक्त एवं वैराग्यमय सूत्र है; फिर आपके बाँचने की छटा ने तो जनता पर इस प्रकार वैराग्य का प्रभाव डाला कि व्याख्यान सुनते २ ही लोगों का ऐसा भाव हो जाता था कि संसार असार है, इसको त्यागकर आज ही दीक्षा ले लें, पर मोह कर्म के जोर से यह वैराग्य व्याख्यान सुनते तक तक ही रहता था। ___ एक दिन सेठजी अमरचन्दजी पीतलिया;रूपचन्दजी अग्रवाला, इन्द्रचंदजी कावड़िया दिन को १ बजे मुनिश्री के पास आये और एकान्त में कुछ प्रश्नोत्तर किए। पहिले तो और और बातें हुई, बाद में सेठजी ने जिनप्रतिमा का विषय छेड़ा, जो कि श्रापका खास ध्येय था। सेठजी०-सूत्रों में शाश्वती जिन प्रतिमा बतलाई है, आप उसको किसकी प्रतिमा मानते हो ? मुनिजी०-जिन प्रतिमा को जिनकी प्रतिमा ही मानता हूँ। सेठजी०-किस आधार से ? मुनिजी०-सूत्रों में जिन-प्रतिमा लिखी है। सेठजी०- सूत्रों में जिन तीन प्रकार के बतलाये हैं (१) अवधिजिन, ( २ ) मनः-पर्यव जिन, और ( ३ ) केवली जिन, तो वे जिन प्रतिमाएं किस जिन की हैं ?
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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