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________________ २८-उदयपुर में जीवाभिगम सूत्र का व्याख्यान गंगापुर का चतुर्माप्त समाप्त कर श्राप पुरमांडल आदि प्रामो में भ्रमण करते हुए भीलवाड़े पधारे । आपके व्याख्यान की सब जगह धूम मच जाती थी। आपने अपने सारगर्भित व्याख्यानो द्वारा कई ग्रामों के राजपूतों, दरोगों, और भीलों को मांस मदिरा का त्याग करवा दिया था । मेवाड़ में आपका ऐसा डंका बज रहा था मानो स्वयम् पूज्यजी महाराज ही पधारे हों । ग्राम २ के लोग विनती के लिए आ २ कर आग्रह किया करते थे। ___ गंगापुर के लोगों की श्रद्धा और भक्ति इतनी बढ़ कई थी कि उन्होंने गंगापुर से भीलवाड़े तक मुनि श्री की सेवा में रह कर के लाभ प्राप्त किया। इधर उदयपुर वालों को मालूम हुआ तो वे लोग भी भीलवाड़े में आकर हाजिर हुए तथा उदयपुर पधारने के लिए बहुत आग्रह करने लगे। मुनिश्री ने कहा कि आप का तो बड़ा शहर है, बहुत से साधु आते हैं, किन्तु इन बेचारे ग्रामीण जनों को साधुओं का संयोग कब मिलता है; अतः हम इन ग्रामों में विचरते हुए आवेंगे। आपके धर्म-प्रचार की ऐसी भावना से उदयपुर के लोग भी बहुत प्रसन्न हुए । वे लोग दो-तीन व्याख्यान सुन कर उदयपुर चले गये। इस प्रकार क्रमशः प्रामों में उपदेश करते हुए मुनि श्री ने मंगसर शुक्ल ९ को बड़े सन्मान एवं सत्कार पूर्वक उदयपुर में प्रवेश किया। स्वागत के लिए क्या राज्य कर्मचारी और क्या व्यापारी सब ही अग्रसर थे और बहुत दूर २ तक अगवानी के लिए.
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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