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उदयपुर के आवकों की विनती
जिनमें उदयपुर के श्रावक अच्छे जानकार थे । वे लोग आपका व्याख्यान सुनकर एवं ज्ञान-ध्यान देखकर मंत्र-मुग्ध होगये । उन्होंने
आपसे उदयपुर पधारने की बहुत आग्रहपूर्वक विनती की । इस पर आपने कहा कि आपकी विनती स्वीकार करना हमारे आधीन की बात नहीं है। हमको तो पूज्यजी महाराज का हुक्म केवल गंगापुर में ही चतुर्मास करने का था । : ' .. उदयपुर के श्रावक बोले कि यदि हमः पूज्यजी महाराज के पास जाकर आपके लिए उदयपुर का हुक्म ले आवें तब तो आप पधारोगे न ?
मुनिश्री०-पूज्यजी महाराज आज्ञा दे देवेंगे, तो हमको इन्कार नहीं होगा।
, उदयपुर के श्रावक गंगापुर से सीधे ही पूज्यजी की सेवा में जोधपुर पहुंचे, और विनती की, कि गयवरचंदजी महाराज मेवाड़ में पधार गये हैं, तो अब उदयपुर पधारने के लिए आज्ञा मिलनी चाहिए। मुनिश्री के उदयपुर पधारने से ज्ञान-ध्यानादि का बहुत लाभ होगा, सब लोगों को बहुत इच्छा है । इस पर दयालु पूज्यत्री महाराज ने हुक्म दे दिया कि गयवरचंदजो को उदयपुर जाने के लिये मेरी आज्ञा है । बस फिर क्या था, उदयपुर वाले श्रावकों ने गंगापुर आकर पूज्यजी महाराज को आज्ञा मुनि श्री को सुना दी और मुनिश्री से उदयपुर के लिए अभिवाचन लेकर षड़ी पाशा और उत्साह के साथ उदयपुर पहुँच कर सबको हर्ष के समाचार सुनाए ।