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________________ १६७ उदयपुर व्या० में जीवाभिगभ सूत्र श्राये थे, उनके दिलों में हर्ष और उत्साह का सागर उमड़ उठा था। आपके लिए सुरपुरि का नोहरा पहिले से ही नियत कर रखा था, अतः आप वहाँ पर ही ठहर गये । गेहरीलाल जी, राजमलजी, रतनलालजी, धनराजजी, सुजानमलजी, रामलानजी आदि श्रावकों को थोकड़ों का बड़ा ही शोक था । कुछ थोकड़े उन्हें पहिले से भी याद थे, अब मुनि श्री से उन्होंने रात्रि में थोकड़ों का अभ्यास करना शुरू किय।। इधर सूत्र सुनने के प्रेमी सूत्र की बातें कर रहे थे; उन्होंने निर्णय किया कि मुनिश्री से श्रीजीवाभिगम सूत्र सुनना चाहिए। क्योंकि ऐसे सूत्रों को साधारण साधु नहीं बाँच सकते हैं । श्रावकों ने व्याख्यान में श्रीजीवाभिगम सूत्र बांचने की प्रार्थना की और मुनिश्री ने इसे स्वीकार कर दूसरे | हो दिन व्याख्यान में श्रीजीव भिगम सूत्र बांचना प्रारंभ कर दिया । दो, तीन दिन व्याख्यान होने पर तो शहर में सर्वत्र प्रशंसा होने लग गई। नगर सेठ नंदलालजी कोठारीजी, बलवंतसिंहजी लालजी, केसरीलालजी, कन्हैयालालजी इत्यादि बड़े २ आदमी ठीक समय पर उपस्थित हो कर वीर वाणी का रस आनन्द के साथ आस्वादन कर अपने आपको अहो भाग्य समझने लगे । 1 व्याख्यान बाँचते करीब २५ दिन हुये थे कि एकदम आपके नेत्रों में तकलीफ हो गई। श्रावकों ने डाक्टरों से बहुत इलाज: करवाया, फिर भी साता वेदनी का उदय होने से १ मास तकं तकलीफ रही। इसी बीमारी को सुनकर आपके गुरुवर मोड़ीरामजी महाराज वगैरह कई साधु व्यावच के लिए श्राये और कुछ दिन ठहरकर जब आपके नेत्रों में आराम हो गया, तो उन्हों s
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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