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________________ तेरह पन्थियों के साथ चर्चा इस काम से आपके साधु को घृत मिष्ठान्न देने के अनुसार पुण्य होता है या नहीं ? ...: तेरह साधु तो संयति है, इसलिए पुण्य होता है; किन्तु असंयति जीवों को पोषण करने में पुण्य नहीं पर पाप ही होता है। ___मुनि०-संयति साधु का श्राप पोषण करते हो परन्तु अंत में वे मरकर तो असंगति हो जाते हैं। यदि जीव बचाने के बाद उन जीवों का किया हुआ पाप जीव बचाने वाले को लगता है तो साधु को पोषण करने के पश्चात् साधु असंयत देवता होकर पापारम्भ करता है, उसका पाप साधु को पोषण करने वाले को क्यों नहीं लगता है, आपकी मान्यतानुसार तो अवश्य ही लगना चाहिये ? - तेरह०-हम तो साधु को निर्जीव आहार-जल देते हैं, पर आप तो कौओं को सजीव धान डालते तथा गायों को कच्चा पानी पिलाने में भी पुण्य समझते हैं न ? . ____ मुनि:-आपका दुष्टाशय तो किसी भी मरते जीव को नहीं बचाने का है, फिर सजीव और निर्जीव का बयाना क्यों करते हो। भलो किसी ने कौओं को निर्जीव चना डाला, गाय को छाछ या दूध पिलाया अच्छा इसमें तो आप पुण्य मानोगे या नहीं ? क्योंकि ये सब तो निर्जीव पदार्थ ही हैं।। ___ इस पर तेरहपन्थी निरुत्तर होगये और उन्होंने कह दिया कि हमारे महाराज को पूछकर इसका उत्तर देवेंगे। मुनि-पापके महाराज को हो यहाँ क्यों नहीं बुलागवे हो, ताकि रुबरु स्पष्टतया निर्णय होजाय ।
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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