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________________ भादश ज्ञान १६२ इस मरते जीव को बचाता हूँ । बार में यदि वह पापारम्भ करेगा तो अच्छा है। यदि आपकी मान्यतानुसार मरते जीव को बचाने के बाद उस जीव का किया हुआ पाप बचाने वाले को लग आय तो देखियेः. १-आप अपने साधुओं को दूध एवं घृत देते हो। साधुओं ने जाकर यदि पात्र खुले रख दिए, और उसमें चार मक्खी पड़ कर मर गई, तो क्या वह पाप आप ही को लगेगा ? . २-आपने अपने साधुओं को मिष्ठान्न दिया और उसके खाने पर उनके पेट में कड़े पड़ गये। शौच करने पर वे सब कीड़े मर गये, तो क्या उनका पाप भी आपही को लगेगा ? क्योंकि आपने ही तो उनको दूध, घृत, तथा मिष्ठान्न दिया था ? ३-आप तेरह पन्थी लोग पापारम्भ कर नरक में जाने योग्य कर्म करते हैं, किन्तु आपके साधु आपको उपदेश द्वारा असत् कर्म से छुड़वाकर धर्मकरणी में लगाते हैं। जब श्राप अपनी मन्यतानुसार मर कर देवलोक में जाओगे, और वहां सैकड़ों देवाङ्गनाओं के साथ मैथुनादि रति-क्रीड़ा करोगे तो वह सव पाप भी आपके साधुओं को ही लगेगा जो कि आपको स्वर्ग में भेजने में कारण स्वरूप बने । क्यों समझ में आगया या नहीं ? तेरह०-हम साधुओं को दूध, घृत एवं मिष्ठान्न वेहरते हैं, वह साधु समझ कर ही वेहारते हैं । बाद मक्खी मरे, या कीड़ा पड़े तो उसको हम मान करके भी अच्छा नहीं समझते हैं। __ मुनि श्री०-यदि इसी प्रकार मरते जीव को बचाने वाला बचाये हुए जीव के पापारम्भ को अच्छा नहीं मानता हो तो
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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