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तेरह पन्थियों के साथ चर्चा मुनि०-देखिये, स्थानायांगसूत्र के नौवें स्थाने में अनादि देने से पुण्य कहा है, और सूयघड़ांग सूत्र में दान-निषेध करने वालों को वृत्ति का छेद करने वाला और प्रश्नव्याकरण सूत्र में दान निषेध करने वाले को चौरे कहा है । इनके अलावा और भी सूत्र देखने हों तो लीजिये-ज्ञाता सूत्र में मल्लीनाथ तीर्थङ्कर ने वर्षीदान देकर पहिला पहर में दीक्षा लो, तथा दूसरे पहर में हो उनको केवल ज्ञान होगया ; यदि वर्षी-दान देने में पाप होता तो बताइये वह पाप मल्लीनाथने किस समय भोगव लिया ? आपके मतानुसार वे मोक्ष में साथ तो नहीं लेगये ? दूसरे राजप्रश्नजी सूत्र में प्रदेशी राजा ने अपने राज्य की श्राय के चतुर्थ भाग से दानशाला करवा कर दान दिया, बाद में वहाँ से मर कर वह सुरियाभा देव हुआ, और वहाँ सुख भोगव कर राजकुँवर दृढ़पाइन्ना होगा और फिर वहाँ भी सुख के साथ मोक्ष प्राप्त करेगा। यदि दान देने में पाप होता, तो वह बिना पाप भोगे, मोक्ष कैसे प्राप्त कर सकेगा ?
तेरह-ठीक है । हमारे महाराज को पूछ कर उत्तर देवेंगे। मुनि०-अच्छा, और कुछ पूछना है ? तेरह-हाँ, एक प्रश्न और पूछना है। मुनि श्री.-क्या प्रश्न है ? तेरह-असंयति जीव को बचाने में आप क्या समझते हो? मुनि श्री.-मरते जीव को बचाने में हम पुण्य समझते हैं।
तेरह०-मरते जीव को बचाने के बाद में जब वह पाप करता है, तो वह पाप क्या जीव बचाने वाले को नहीं लगता ? ___मुनि श्री०-नहीं, पाप और पुण्य तो परिणामों से लगता है। जीव बचाने वाले का यह परिणाम नहीं रहता कि मैं