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गंगापुर में तेरहपन्थियों से चर्चा
आठवें देवलोक में जा सकता है । यह सुन कर तेरह - पन्थियों को शर्मिंदा होना पड़ा। हाजिर-जवाब इसे ही कहते हैं।
एक दिन एक तेरह-पन्थी श्रावक ने मुनि श्री से कहलाया हमको कुछ प्रश्न पूछने हैं, अतः यदि आप समय देवें तो हम आवें ।
मुनिश्री ने उत्तर दिया कि हम आप से एकान्त में बात करना नहीं चाहते क्योंकि हमें आपका विश्वास नहीं है, आपको हम कुछ कहें और बाहर जाकर आप कुछ और ही कहदें । अतः यदि आपको ग्रश्न करने हैं, तो आम जनता में ही कीजिए, जिससे आपके अतिरिक्त अन्य लोगों को भी प्रश्नोत्तर सुनने का लाभ मिले । अतः प्रश्नोत्तर के लिये समय का निर्णय कर लीजिये ।
बस, प्रश्नोत्तर के लिए आश्विन शुक्ला ७ को दिन के १ बजे का समय निश्चित कर दिया गया । उक्त मिती को स्थानकवासी तथा तेरह पन्थियों के वार्तालाप होने की खबर गाँव भर में फैल गई ।
ठीक समय पर मुनि श्री तथा आपके उपासक गण एवं बड़े २ जैनेतर लोग नियत स्थान पर उपस्थित होगये; इधर तेरह - पन्थी श्रावक भी करीब २० आदमियों के साथ आ गये । मुनिश्री ने कहा कहिए आपको क्या पूछना है ?
श्रावक - असंयति को दान देना किस सूत्र में लिखा है ?
मुनि श्री — दान देने वाला श्राप किसको समझते हैं ? साधु
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- को अथवा गृहस्थ को ?
तेरह – गृहस्थ को |
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