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________________ आदर्श-ज्ञान १५८ शब्द का अर्थ जिन - प्रतिमा किया था । ज्ञातासूत्र में द्रौपदी के अधिकार में भी जिनघर जिनप्रतिमा और सत्रह प्रकार की पूजा का उल्लेख देखा | आपने कई अच्छे विद्वान् श्रावकों को भी बे सूत्र दिखाये और उनका मन जिन - प्रतिमा की ओर आकृष्ट कर दिया । उस वर्ष गंगापुर में तेरह पन्थियों का भी चतुर्मास था, उनके भो व्याख्यान बंचता था, किन्तु उनका व्याख्यान पहिले समाप्त हो जाता था और वे सब लोग मुनिश्री के बंचते हुए व्याख्यान के पास से होकर जाया करते थे । एक समय का जिक्र है कि एक तेरहपन्थी साधु किसी दूसरे ग्राम में काल कर गया । गंगापुर के तेरहपन्थियों ने बात उठाई कि हमारे जिस साधु ने काल किया है, वह पांचवें देवलोक में गया है। जब वे लोग हमारे मुनि श्री के व्याख्यान के पास से होकर जाते थे, तब वे इस बात को खूब जोर-जोर से किया करते थे जिससे कि सब लोग सुन लेवें उनके एक दो बार कहने पर तो लोगों ने ख्याल ही नहीं किया, किन्तु वे तो इस बात को बार बार कहते ही रहे । एक दिन मुनिश्री ने अपने एक श्रावक से पूछा तेरह-पन्थी लोग हमेशा क्या कहते हैं ? कि यह श्रावक - इनके एक साधु ने काल किया है, जिसके विषय में ये कहते हैं कि वह साधु पाँचवे देवलोक में गया है । तेरह-पन्थी लोग भी उस समय नजदीक से जारहे थे । मुनिश्री ने जोर से कहा कि इस में कौनसी बड़ी बात हुई, हमारे यहाँ तो एक गधा या कुत्ता भी मर कर पांचवें ही क्यों
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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