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________________ आदर्श-ज्ञान १५६ पन्थियों के साथ वार्तालाप करने में भी तुम कुशल हो, अतः मेरी आज्ञा है कि तुम गंगापुर जाकर चतुर्मास करो । आखिर बड़ों की आज्ञा शिरोधार्य करनी ही पड़ती है । पूज्यजो ने मगनलालजी नामक व्यावच्च करने वाले एक साधु को श्राप केसाथ देकर आपको गंगापुर भेज दिया । वर्षा ऋतु आगई थी,आषाढ़ का महिना था, रास्ते में जल तथा वनस्पति बहुतायत से हो गई थी, यद्यपि गंगापुर के श्रावकों की भक्ति प्रशंसनीय थी; वे कोसों तक सामने आये तथा उन्होंने मार्गादि का सुभीता कर दिया । आप आषाढ़ शुक्ला ८ को गंगापुर पहुँच गये । व्याख्यान में आपने श्री संघ के आग्रह से श्री भगवती सूत्र का पढ़ना प्रारम्भ किया। ठहरने का स्थान बाजार की दुकानों के ऊपर होनेसे एक सार्वजनिक स्थान ही कहा जा सकता था । यही कारण था कि व्याख्यान में जैन एवं जैनेतरों की संख्या खूब अच्छी रहती थी, साथ ही आपका व्याख्यान भी ऐसे ढंग से होता था कि लोग सुनने को ललचा जाते थे। __ इस चतुर्मास में आपकी रुचि व्याकरण पढ़ने की ओर झुकी क्योंकि बिना व्याकरण न तो शब्द-शुद्धि होती है और न टीकादि प्रन्थ ही पढ़े जा सकते हैं। श्रावकों ने इस कार्य के लिये एक साधारण पंडित को रख दिया। आपने शुरू से सारस्वत व्याकरण का अभ्यास प्रारम्भ किया। उधर जोधपुर में जब पूज्यजी को मालूम हुआ कि गयवरचंदजी गंगापुर में पंडित के पास व्याकरण पढ़ते हैं, तो उन्होंने उसी समय गंगापुर के श्रावकों को कहला दिया कि तुम हमारे साधुओंको बिगाड़ते हो,अतः आइन्दासे तुमको साधु नहीं मिलेगा । पूज्यजी महाराज पहिले से ही गयवरचंदजी
SR No.002447
Book TitleAadarsh Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1940
Total Pages734
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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